सजीव जगत की परिचय :
रासायनिक दृष्टि से जीवन अणुओ का विशिष्ट तथा जटिल संगठन है जो वृद्धि (Growth) परिवर्धन (Development) श्वसन (Respiration) जनन (Reproduction)अनुकूलन तथा जीर्णता(adaptation and againg) आदि को जैव रासायनिक अभिक्रिया के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है।
सजीव तथा निर्जीव दोनों का निर्माण तत्वों से होता है। जीवों के निर्माण में 99% भाग कार्बन C हाइड्रोजन H ऑक्सीजन O तथा नाइट्रोजन N का होता है।
सजीव तथा निर्जीव समान भौतिक नियमों जैसे गुरुत्वाकर्षण(Gravitation) चुंबकत्व(Magnestism) क्रिया प्रतिक्रिया (Action reaction)तथा विकिरण(Radiation) का अनुसरण करते हैं।
सजीव का शरीर अनेक निर्जीव कार्बनिक (organic) अकार्बनिक(inorganic)अणुओं से मिलकर बना होता है और जीवधारी अपनी सजीवता को नियमित रखने के लिए इन अणुओ को बाह्य वातावरण से भी ग्रहण करते रहते हैं।
जीवधारियों का मूलभूत लक्षण (Protoplasm) जीवद्रव्य की उपस्थिति है जिसमें जीवन की समस्त जैविक क्रियाएं पूर्ण रूप से संपन्न होती हैं इसीलिए हेक्षले ने जीवद्रव्य को जीवन का भौतिक आधार कहां है जीवद्रव्य कोशिका कला के माध्यम से सूक्ष्म सरल एवं निर्जीव अणुओ को ग्रहण करके उन्हें जटिल रूप में परिवर्तित कर स्वांगीकृत(Assimilate) कर लेता है।
विषाणु सजीव तथा निर्जीव के (connective link)मध्य संयोजक कड़ी है। सजीव को निर्जीव से कुछ मूलभूत लक्षण जैसे कोशिकीय संरचना जीवद्रव्य की उपस्थिति वृद्धि एवं परिवर्धन प्रजनन की क्षमता संरचनात्मक तथा विघटनात्मक प्रक्रियाओ का सकल योग उपापचय(metabolism) पोषण श्वसन समस्थापन (homeostasis)उत्सर्जन गती अनुकूलन के आधार पर विभाजित किया जाता है।
वर्गीकरण-:
जीव धारियों को उनकी आकारिकी विकास तथा अन्य लक्षणों एवं संबंधों में समानता तथा असमानता के आधार पर विभिन्न समूहों के पदानुक्रम श्रेणी में वैज्ञानिक रूप से क्रमबद्ध करने की क्रिया वर्गीकरण कहलाती हैं
वर्गीकरण तीन प्रकार का होता है-:
1-: कृत्रिम वर्गीकरण
Artificial classification
-: जीव धारियों को उनके 1 , 2 या कुछ अन्य लक्षणों के आधार पर वर्गीकृत किया जाए तो वह क्रिश्चियन वर्गीकरण कहलाता है पादपों का क्रेज दिन वर्गीकरण लीनियस ने दिया था।
2-: प्राकृतिक वर्गीकरण
Natural classification
जिवधारियों के अनेक लक्षण तथा उन लक्षणों का अन्य जीवो तथा वातावरणीय दशाओं के साथ पारस्परिक संबंधों के आधार पर किया गया वर्गीकरण प्राकृतिक वर्गीकरण कहलाता है।
3-: जातिवृत्तीय वर्गीकरण
Phylogenetic classification
अनुवांशिक जननीक गुणो के साथ साथ विकासीय गुणों को भी आधार बनाकर वर्गीकरण करना जातिवृत्तिय वर्गीकरण कहलाता है ।
जीव धारियों को उनकी आकारिकी विकास तथा अन्य लक्षणों एवं संबंधों में समानता तथा असमानता के आधार पर विभिन्न समूहों के पदानुक्रम श्रेणी में वैज्ञानिक रूप से क्रमबद्ध करने की क्रिया वर्गीकरण कहलाती हैं
वर्गीकरण तीन प्रकार का होता है-:
1-: कृत्रिम वर्गीकरण
Artificial classification
-: जीव धारियों को उनके 1 , 2 या कुछ अन्य लक्षणों के आधार पर वर्गीकृत किया जाए तो वह क्रिश्चियन वर्गीकरण कहलाता है पादपों का क्रेज दिन वर्गीकरण लीनियस ने दिया था।
2-: प्राकृतिक वर्गीकरण
Natural classification
जिवधारियों के अनेक लक्षण तथा उन लक्षणों का अन्य जीवो तथा वातावरणीय दशाओं के साथ पारस्परिक संबंधों के आधार पर किया गया वर्गीकरण प्राकृतिक वर्गीकरण कहलाता है।
3-: जातिवृत्तीय वर्गीकरण
Phylogenetic classification
अनुवांशिक जननीक गुणो के साथ साथ विकासीय गुणों को भी आधार बनाकर वर्गीकरण करना जातिवृत्तिय वर्गीकरण कहलाता है ।
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